Wednesday, October 3, 2007

रघुपति राघव राजा राम .... बापू के जन्म दिवस पर

रामनाम मेरे लिये अमोघ शक्ति है!
आत्मार्थी के लिये रामनाम और रामकृपा ही अंतिम साधन है!
रामायण-श्रवण, रामायण के प्रति मेरे अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है!

मै तुलसीदास की रामायण को भक्तिमार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूँ!

डा. सर्वपल्लि राधाकृष्णन ने बापू से एक बार तीन प्रश्न किये:
- आपका धर्म क्या है?
- आपके जीवन मे धर्म का क्या प्रभाव है?
- सामाजिक जीवन मे इसकी क्या भूमिका है?

बापू ने कहा:
मेरा धर्म है हिन्दुत्व, यह मेरे लिये मानवता का धर्म है और मै जिन भी धर्मो को जानता हूँ, उनमे सर्वोत्तम है!

दूसरे प्रश्न के सन्दर्भ मे बोले, कि सत्य और अहिंसा के माध्यम से मै अपने धर्म से जुडा हुआ हूँ. मै अक्सर अपने धर्म को सत्य का धर्म कहता आया हूँ. यहाँ तक, कि ईश्वर सत्य है के बजाए सत्य ही ईश्वर है कहता हूँ.

तीसरे प्रश्न पर उनका उत्तर था, इस धर्म का सामाजिक जीवन पर प्रभाव दैनिक सामाजिक व्यवहार मे परिलक्षित होता है. ऐसे धर्म के प्रति सत्यनिष्ठ होने के लिये, जीवन पर्यंत अपने अहँ को त्यागना होता है. इसलिये मेरे लिये तो समाज सेवा से बचने का कोई रास्ता है ही नहीँ.

जितनी गहराई से मै हिन्दुत्व का अध्ययन करता हूँ, उतना ही मुझमे विश्वास गहरा होता जाता है, कि हिन्दुत्व ब्रम्हाण्ड जितना ही व्याप्त है. मेरे भीतर से कोई मुझे बताता है कि मैँ एक हिन्दू हूँ और बस.

तीर्थोँ के विषय मे एक बार उनसे किसी ने पूछा. ये बोले, हमारे पूर्वज बहुत गहन दृष्टि रखते थे. यूँ ही तीर्थ पूरे भारत के हर कोने मे नहीँ बना दिये गये. भला यदि अर्चना ही इनका उद्देश्य होता, तो वह तो घर बैठे भी हो सकती थी. इसके लिये दक्षिण मे रामेश्वर, पूर्व मे जगन्नाथ उत्तर मे हरिद्वार इत्यादि जाने की क्या आवश्यकता थी? किंतु हमारे पूर्वज मनीषी थे, दूरदर्शी थे. ये सभी सुदूर तीर्थ इसलिये ताकि हम, भारतवासी, अपने पूरे देश को एक समान आदर और पूजनीय दृष्टि से देख सकेँ. ये तीर्थ हमे यही याद दिलाते हैँ.

(महात्मा गान्धी की आत्मकथा तथा वांग़्मय से)

hits since Chaitra 7, 2064 Vikram (March 26, 2007)